?✨️♥️? नंदी और रुद्राक्ष के बिना सावन कैसे होगा सावन माह मै रुद्राक्ष धारण करे .आप सभी सावन माह की बहुत बहुत शुभ कामनाऐ. ???

#नन्दी_के_महादेव महादेव ने नन्दी के सर को अपने विशाल हाथों में लिया और उसे माथे पर सहलाते हुए दिव्य स्वर में बोले “उठो नन्दी ! आँखे खोलो ! देखो मैं आ गया हूँ !” नन्दी की आँखों से अश्रु बहते ही जा रहे थे... आँखों के नीचे अश्रुओं की धारा उसके चेहरे से होती हुई टप-टप बहती हुई धरती को निरन्तर भिगोती चली जा रही थी... उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह महादेव का स्वर है... महादेव ने नन्दी को चूमा और फिर से कहा “उठो नन्दी ! तुम्हारी प्रतीक्षा समाप्त हुई मेरे बच्चे ! उठो अब तुम्हारी पीड़ा का अन्त आ गया है!” नन्दी ने अपनी आँखें खोली और सामने उसी प्रकाश के पुँज को पाया जिसके दर्शन वह बचपन से करता आया था... नन्दी ख़ुशी के मारे झूम उठा... उसने अपने सर को उठाया और अपने चारों ओर देखा... चहुँओर उल्लास के स्वर गूँज रहे थे... नन्दी ने आगे बढ़ कर महादेव की गोद में अपना सिर रख दिया और कातर स्वर में बोला “प्रभु ! आपने इतना समय क्यूँ लगा दिया? मैं वर्षों से यहीं पड़ा पड़ा आपकी राह देख रहा था... आपका तिरस्कार होते हुए देखता था... खून के आँसू रोता था... आपके भक्तों की लाचारी देखता था... उनकी निष्क्रियता देखता था और देख कर मन मसोस कर रह जाता था” इतना कह कर नन्दी की आँखों से फिर एक बार अश्रुधारा बह निकली और महादेव के वस्त्रों को भिगोने लगी... महादेव ने नन्दी की आँखों पर अपने हाथ फेरे और उसके अश्रुओं को पोंछने का प्रयास किया... नन्दी के अश्रुओं से महादेव की हथेलियाँ भीग गयीं... महादेव ने नन्दी को पुचकारते हुए कहा, “नन्दी ! मैं तो यहीं था... मैं कहीं नहीं गया था... मैं मौन होकर देख रहा था... देख रहा था कि मानवता किस सीमा तक जा सकती है... देख रहा था कि मेरे भक्त मेरे पास कब आते हैं... कब वे आततायियों से मेरे लिए प्रश्न करते हैं…. कब वे मुझे ढूँढ़ निकालते हैं... मैं वर्षों से प्रतीक्षा कर रहा था... मेरे देखते ही देखते बहुत लोग आए और चले गए... शासनाध्यक्ष बदले परन्तु किसी ने भी मेरी सुध नहीं ली... विदेशी आक्रांता आए... उनके साथ मिले हुए स्थानीय लोग भी आए... फिर विदेशी आक्रांता चले गए तो उनके स्थान पर स्थानीय शासक भी विदेशी आक्रांताओं जैसा ही आचरण अपनाए रहे... मैं सब देख रहा था... उनके पापों को देख रहा था... फिर भी मैंने प्रतीक्षा की कि मेरे सच्चे भक्त एक दिन आएँगे... परन्तु युग बदलते- बदलते लोगों को नवजागरण होना एकदम आवश्यक हो गया था... फिर मैंने एक दिव्य साधक को भेजा और उसके शिष्य के रूप में एक योगी को भेजा... उस साधक ने मृतकों की भाँति सोए हुए मनुष्यों को झँझोड़ कर जगाना शुरू किया... उसने इन सब को उनके श्रेष्ठ होने का बोध करवाया... उनको उनकी भुलायी जा चुकी संस्कृति का बोध करवाया... उनका मृतप्राय हो चुका आत्मसम्मान जगाया और उन्हें मेरी याद दिला दी... अब वे सब अधीर होकर मुझे ढूँढ़ने लगे... मैं यहीं था पर वो मुझे देख नहीं पा रहे थे क्यूँकि वे जाग तो गए थे परन्तु अभी भी अर्धनिंद्रा में ही थे... वे एक नहीं थे... वे बँटे हुए थे... वे अलग अलग ही मुझे ढूँढ़ना चाह रहे थे ताकि जब मैं मिल जाऊँ तो वे सबके सामने चिल्ला-चिल्ला कर कह सकें कि उन्होंने मुझे ढूँढ़ा है और मुझ पर केवल उनके समूह का ही अधिकार है... फिर उस साधक और उसके शिष्य योगी ने जब देखा कि समय बीतता जा रहा है तो उन्होंने मुझे सबके सामने लाने का बीड़ा भी स्वयं ही उठा लिया... उन्होंने साम- दाम- दण्ड- भेद का प्रयोग करते हुए मुझे सामने लाने का प्रयास तेज कर दिया... उधर साथ ही साथ वे लोगों में एकता लाने का भी प्रयास कर रहे थे... फिर आज सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा के दिन वह घड़ी आ गयी जब मुझे संतुष्टि हो गयी कि अब सही समय है... अब मुझे सामने आकर दर्शन देने चाहिए... और परिणाम तुम्हारे सामने हैं नन्दी ! तुम मेरी गोद में हो और मैं सैंकड़ों वर्षों बाद आज तुम्हें दुलार रहा हूँ... नन्दी ! यदि उन्होंने सामूहिक प्रयास किया होता तो मैं सैंकड़ों वर्ष पहले ही प्रकट हो गया होता... अब भी बहुत कुछ है ढूँढ़ने को... अब भी ये सब लोग सामूहिक प्रयास करें तो मेरे कई और रूप हैं जो इसी प्रकार छुपे हुए हैं... जो प्रतीक्षा कर रहे हैं... इस प्रतीक्षा का अन्त अब निकट है... सब पत्थरों को उठा कर उनके नीचे देखो मैं सब जगह दिखाई दूँगा...” इतना कह कर महादेव उठ खड़े हुए और नन्दी से बोले “बहुत दिन हो गए कैलाश की ओर नहीं गए... चलो ज़रा कैलाश की ओर ले चलो!” और फिर महादेव को अपनी पीठ पर बिठा कर नन्दी कैलाश की ओर बढ़ चला ! #हर_हर_महादेव

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I am certified in astrology with 6 year of experience and passionate about guiding you toward a...

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