.महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 88 से श्राद्ध की 21बातें।
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निर्णय सिन्धु का द्वितीय परिछेद
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(1)? तिल,व्रीहि,यव, उडदी, जल तथा फल मूल के द्वारा श्राद्ध को करने से एक महीने तक पितरों की तृप्ति बनी रहती है।
(2)? जिस श्राद्ध में अधिक तिल की मात्रा होती है वह श्राद्ध अक्षय होता है-ऐसा मनु जी ने कहा है।
(3)? यदि श्राद्ध में गौ का दही दान किया जाए तो उसके पितर एक साल तक तृप्त रहते हैं। तद्वत् घी से मिश्रित खीर भी दान करे तो पूर्ववत व्यवस्था होती है।
(4)? आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मघा और त्रयोदशी तिथि के योग पर हमारे आत्मीय बांधव घी मिश्रित दान करेंगे- ऐसी पितर आशा करते हैं।
(5)? 'बहुत से पुत्र प्राप्त करने की इच्छा रखें' उनमें से यदि एक भी पुत्र गया तीर्थ की यात्रा करें जहां पर अक्षय वट है जो की श्रद्धा के फल को अक्षय बनाता है।
(6)? जो कृतिका नक्षत्र के योग में श्रद्धा और पितरों का यजन करता है, वह रोग तथा चिंता से रहित होता है।
(7)? पुत्र की इच्छा करने वाला रोहिणी में तथा तेज की कामना वाला मृगशिरा नक्षत्र में श्रद्धा करें तथा आद्रा नक्षत्र में श्रद्धा और दान करने वाला क्रूर करमा होता है।
(8)? धन की इच्छा वाला पुनर्वसु नक्षत्र में और पुष्टि की इच्छा वाला पुष्य नक्षत्र में श्रद्धा करें ।अश्लेषा में श्रद्धा करने से धीर पुत्रों को उत्पन्न करता है। मघा मैं पिंड देने वाला कुटुंबी जनों में उत्तम होता है। पूर्वाफाल्गुनी में सौभाग्यशाली होता है। उत्तराफाल्गुनी में- सन्तान वाला होता है। हस्त नक्षत्र में-अभीष्टफल भोगता है। चित्रा में रूपवान पुत्र प्राप्त होते हैं तथा स्वाति नक्षत्र के योग में पितरों की पूजा से वाणिज्य से जीवन निर्वाह करता है। विशाखा में श्राद्ध से पुत्रेच्छा हो तो बहुत पुत्रों वाला होता है। अनुराधा में तो दूसरे जन्म में राजमणडल का शासक होता है। ज्येष्ठा में समृद्धिशाली तथा प्रभुत्व प्राप्त करता है। मूल में आरोग्यता, पूर्वाषाढ में उत्तम यश, उत्तराषाढ में पितृ यज्ञ करने वाला होता है और शोक से रहित रहता है।
(9)? सोम रस बेचने वालों को जो श्राद्ध में अन्य देता है वह पितरों के लिए विष्ठा के सद्दश होता है।
(10)? श्राद्ध में वैद्य को भोजन कराया हुआ अन्य पीव और रक्त के समान पितरों को आग्राह्य होता है।
(11)? देवमंदिर में पूजा कर जीविका चलने वाले को दिया हुआ अन्न और श्रद्धा का दान नष्ट हो जाता है।
(12)? एक पति को त्याग कर दूसरा पति करने वाली स्त्री के पुत्र को दिया हुआ श्राद्ध में अन्नदान राख में डाले हुए हविष्य के समान व्यर्थ होता है।
(13)? जो लोग धर्म रहित तथा चरित्रहीन ब्राह्मण को हव्य - कव्य का दान करते हैं, उनका वह दान परलोक में नष्ट हो जाता है।
(14)? जो मूर्ख मनुष्य जानकर पंक्तिदूषक ब्राह्मण को श्राद्ध में दान करते हैं, उनके पितर परलोक में निश्चय ही उनकी विष्ठा खाते हैं।
(15)? जो मूर्ख ब्राह्मण शूद्रों को वेद का उपदेश करते हैं वे भी अपांक्तेय (अर्थात पंक्ति के बाहर हैं)। उनको भी श्राद्ध में भोजन न करावे।
(16)? श्राद्ध में- काना मनुष्य पंक्ति में बैठे हुए साठ मनुष्यों को, जो नपुंसक हैं वह सौ मनुष्यों को और कोढ़ी बैठे हुए जितने मनुष्यों को देखता है दूषित करता है।
(17)? जो सिर पर पगड़ी और टोपी रखकर भोजन करता है, जो दक्षिण दिशा की ओर मुख कर भोजन करता है तथा जो जूता पहनकर खाता है उनका सब भोजन आसुर जानना चाहिए।
(18)? जो श्रद्धा तिलों से नहीं होता है। या जो क्रोधपूर्वक किया जाता है उसके हवि को यातुधान (राक्षस) तथा पिशाच लुप्त कर देते हैं ।
(19)? प्रत्येक पिंड को देते समय गायत्री मंत्र का उच्चारण करे।
(20)? जो स्त्री रजोयुक्त हो या जिसके दोनों कान बहरे हों उसको श्राद्ध में नहीं ठहरना चाहिए।
(21)? जो वैदिक व्रत का पालन कर रहे हो वे यदि किसी के अनुरोध से श्राद्ध का अन्न ग्रहण करते हैं तो उनका व्रत भंग हो जाता है।
उपरोक्त 21सूत्र निर्णयसिन्धु: के पृष्ठ क्रमांक 388 से लिए गए है।
*जय श्री राधे कृष्णा*