सही ज्योतिषी और उसके आवश्यक लक्षण
*||सही ज्योतिषी और उनके आवश्यक लक्षण||*
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले व्यक्ति को... *ज्योतिषी, ज्योतिर्विद, कालज्ञ, त्रिकालदर्शी, सर्वज्ञ..* आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है। *सांवत्सर, गुणक, देवज्ञ, ज्योतिषिक, ज्योतिषी, मोहूर्तिक, सांवत्सरिक..* आदि शब्द भी ज्योतिषी के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं।
ज्योतिष व ज्योतिषी के संबंध में सभी परिभाषाओं का सुन्दर समाहार हमें *वराहमिहिर की "बृहद् संहिता" से...* प्राप्त होता है। वराहमिहिर लिखते हैं ग्रह गणित (सिद्धांत) विभाग में स्थित पौलिश, रोमक, वरिष्ट सौर, पितामह इन पाँच सिद्धांतों में प्रतिपादित युग, वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरात्र, प्रहर, मुहूर्त, घटी, पल, प्राण, त्रुटि आदि के क्षेत्र का सौर, सावन, नक्षत्र, चन्द्र इन चारों मानों को तथा अधिक मास, क्षय मास, इनके उत्पत्ति कारणों के सूर्य आदि ग्रहों को शीघ्र तुन्द, दक्षिण उत्तर, नीच और उच्च गतियों के कारणों को सूर्य-चन्द्र ग्रहण में स्पर्श, मोक्ष इनके दिग्ज्ञान, स्थिति, विभेद वर्ग को बताने में दक्ष, पृथ्वी, नक्षत्रों के भ्रमण, संस्थान(रेखांश)- अक्षांश, चरखण्ड, राश्योदय, छाया, नाड़ी, करण आदि को जानने वाला, ज्योतिष विषयक समस्त प्रकार की शंकाओं व प्रश्न भेदों को जानने वाला तथा परीक्षा की काल की कसौटी में, आग और शरण से परीक्षित शुद्ध स्वर्ण की तरह स्वच्छ, साररूप वाणी बोलने वाला, निश्चयात्मक ज्ञान से सम्पन्न व्यक्ति ज्योतिषी कहलाता है। *इस प्रकार से शास्त्र ज्ञान से सम्पन्न, ज्योतिषी को होरा शास्त्र में भी अच्छी तरह से निष्णात होना चाहिए, तभी गुण सम्पन्न ज्योतिषी की वाणी सटिक होगी... कभी भी खाली नहीं जाती।*
*ज्योतिषी के लक्षण--->>*
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
एक ज्योतिषी के लक्षण बताते हुए ... *आचार्य वराहमिहिर कहते हैं कि... ज्योतिषी को देखने में प्रिय, वाणी में संयत, सत्यवादी, व्यवहार में विनम्र होना चाहिए। इसके अतिरिक्त वह दुर्व्यसनों से दूर, पवित्र अन्तःकरण वाला, चतुर, सभा में आत्मविश्वास के साथ बोलने वाला, प्रतिभाशाली, देशकाल व परिस्थिति को जानने वाला, निर्मल हृदय वाला, ग्रह शान्ति के उपायों को जानने वाला, मन्त्रपाठ में दक्ष, पौष्टिक कर्म को जानने वाला, अभिचार मोहन विद्या को जानने वाला, देवपूजन, व्रत-उपवासों को निरंतर, प्राकृतिक शुभाशुभों के संकेतों को समझाने वाला, ग्रहों की गणित, सिद्धांत संहिता व होरा तीनों में निपुण ग्रंथी के अर्थ को जानने वाला व मृदुभाषी होना चाहिए।*
*सामुद्रिक शास्त्र* में ज्योतिषी के लिए हिदायत दी गई है कि... सूर्योदय के पहले, सूर्यास्त के बाद, मार्ग में चलते हुए, जहाँ हँसी-मनोविनोद होता हो, उस स्थान में एवं अज्ञानी लोगों की सभा में भविष्यवाणी न करें।
ज्योतिषी को अधिकतम अपने स्थान पर बैठकर... *जिज्ञासु व्यक्ति की दक्षिणा का फल, पुष्प व पुण्य भाव को प्राप्त करने के पश्चात.. अपने ईष्ट को ध्यान करके ही हस्तरेखाओं एवं कुण्डलियों पर फलादेश करना चाहिए..* क्योंकि.. *ईश्वर, ज्योतिषी व राजा के पास खाली हाथ आया व्यक्ति खाली ही जाता है..‼️*
ज्योतिषी को गोचर, दशा-फल अनुसार विचार, दोषों का प्रभाव व उनके उपाय, इत्यादि जैसी सभी गंभीर विषयो का ज्ञान होना चाहिए।
दोषों के उपायों से संबंधित *कर्म काण्ड का ज्ञान* भी ज्योतिषी के लिए महत्तवपूर्ण है। जैसे ---किसी जातक की जन्म पत्रिका में *मूल नक्षत्र दोष* हो तो उन दोषो की शांति का उपाय वैदिक रीति द्वारा किस तरह किसी योग्य *वेद पाठी ब्रह्माण द्वारा* करवाया जाए इसका ज्ञान होना आवश्यक है। *ज्योतिषी चाहे खुद पूजा न करें किंतु पूजा किस प्रकार होगी इस कर्म का ज्ञान उसके लिए अतिआवश्यक है।*कुंडली विश्लेषण,104 पेज की विस्तृत पत्रिका बनवाने के लिए, कुंडली मिलान, वास्तु, मुहूर्त क्रिस्टल थेरेपी, रेकी हीलिंग, हस्तरेखा ,सभी प्रकार के संस्कार, मंत्र जाप ,जीवन में आने वाली कैसी भी बाधाएँ दूर करने से संबंधित विशेषज्ञ जानकारी के लिए संपर्क करें 9540740134
डॉ वाणी वेदायनी
लाइफ सलाहकार